शनिवार, 26 जुलाई 2014

एक 'बीमार' से मिलते हुए!!!

वह बहुत बीमार चल रही हैं
हालत काफी गंभीर हैं!
उन्होंने बताया था-
तुम बात कर लेना,
तुम्हें याद करती हैं।

शब्दों के चुनाव मे फंसी मैं
कैसे करूंगी अपनी भावनाओं को व्यक्त!!

मोबाइल पर उनका नंबर डायल करने से पहले
बहुत से शब्दों को  मन ही मन
रटकर मैंने कहा-हैलो!

एक खनकती सी आवाज कानों में  घुल गई
वे ऐसे चहकी मानो पिजड़े में कैद चिड़िया
किसी को देख कर चहकती है -

कैसी हो? पूछती है वे
प्रत्युत्तर में मैंने पूछा-
पहले आप बताइये कैसी हैं?

शब्दों का इशारा शायद समझ गई।
तुरंत ही बोल पड़ी-
पता है तुम्हें, मुझे यहां
डाक्टरों ने बांध् रखा है,
कुछ नहीं हुआ है मुझे।
वे ऐसे बोली गर....
एक बच्चा शिकायत कर रहा हो!

अब तक की गई बातों में मेरी उनसे
तीसरी बातचीत थी यह,
पर ....बन गई थी एक लंबी बातचीतनुमा 'मुलाकात।'
इस बातचीत में
उन्होंने दे दिया मुंबई आने का निमंत्रण,
हाथ का बना खााना खाने का 'लजीज' प्रस्ताव भी,
पता नहीं और क्या -क्या
उनका उत्साह देखकर मैं भूल गई
वह सारे शब्द जो एक बीमार का
हालचाल लेते समय कहे
और सुने जाते है।

मैं सुने जा रही थी उनकी हंसी
बस प्यारी हंसी
और मधुर आवाज।

क्या मैं बीमार महिला से बात कर रही थी?

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