शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

शनिचर हरता!

प्रत्येक शनिवार
हमारा शनिचर उतारने के लिए
मिल जायेगे, हर चौराहे और
रेड लाइट पर
अबोध, बुझे से, गंदे -फटे कपड़े में
बहुत से बचपन।
एक लोटे में
एक लोहे की मूर्ति ,
और थोड़े से कडुवे तेल के साथ
घूमते यह नन्हें
शनिचर हरता !
दीदी, भैया, आंटी कह कर
प्रगट हो जाते है एक देवता की तरह
और मारे डर के, एक -दो रुपये में
इस तत्काल प्रगट शनि से
पीछा छुडाते हम, एक चौराहे से
दुसरे चौराहे चले जाते।
पर हर चौराहे पर डटे
हे नन्हें शनिचर हरता!
तुम्हारा शनिचर कौन हरेगा?
कब हरेगा?
तुम्हारे लिए हर चौराहे
और रेड लाइट पर
कौन खड़ा होगा?
स्वयं शनि देवता
या खुद तुम!
पर कब???

सोमवार, 8 मार्च 2010

बस आज 'एक दिन'



बस आज 'एक दिन'


अलार्म बजने पर


क्या नहीं उठूंगी सबसे पहले


कोई दे जायेगा सुबह की चाय


क्या मेरे बिस्तर पर


नही बेलनी पड़ेगी आज रोटियां ।


दफ्तर जाते समय


आज, नहीं घूरेगा मेरा पडोसी


नुक्कड़ पर बैठे लडके


नहीं गायेगे वह गाना


'एक बार ...आ जा आ जा '


बस की भीड़ में आज नहीं


लेगा कोई चिकोटी...


ऑफिस में बगल की सीट में


बैठने वाले वर्मा जी


नहीं सुनायेंगे कोई


...नॉनवेचुटकला...


मुझे कमतर न मानते हुए मेरे बॉस


आज देगे मुझे 'योग्यतम' जिम्मेदारी


इसी ख़ुशी के साथ


जब मैं पहुचुगी घर


थोड़ी देर से,


तो पति की निगाहे नहीं करेगी


कोई सवाल...


बस आज एक दिन


'महिला दिवस' पर !!!




रविवार, 14 फ़रवरी 2010

ओ! मेरे संत बैलेंटाइन



ओ! मेरे संत बैलेंटाइन
आप ने ये कैसा प्रेम फैलाया
प्रेम के नाम पर कैसा प्रेम "भार" डाला
आप पहले बताएं
प्यार करते हुए आप ने कभी
बोला था अपने प्रिय पात्र से
कि .....
आई लव यू...
दिया था शानदार तोहफा
या कोई ग्रीटिंग कार्ड
पर अब हमें
आप के इस "प्रेम दिवस" पर
देना पड़ता है तोहफा
मानना पड़ता है वर्ष में
एक बार यह "प्रेम दिवस"
...... ...... ......
आप एक बार आकर
प्यार से हाथ फेर कर
अपने आखों के जादू से
प्यार सिखला दो...
हमें ....
प्यार फैला दो...
ओ! मेरे संत बैलेंटाइन
वादा करो .... तुम ....
कि ....
अगले बरस जरुर आओगे!!!!




मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

स्मृतियों का ढेर

दोछत्ति पर पड़ा कबाड़
है स्मृतियों का ढेर
या फिर विस्म्रतियों का
................................
तीन टांग की कुर्सी
एक रंगहीन गुलदान
छोटू का आधी सूड वाला हाथी
घर का पहला श्वेत- श्याम टी वी
और टीन का बहुत पुराना कनस्तर
और भी बहुत कुछ
टूटा - फूटा ....
जो नहीं टूटी वह है,
इनकी स्मृतियाँ
दिमाग के किसी कोने में
कबाड़ की तरह पड़ी हुई
बरसो बरस से ...

रविवार, 10 जनवरी 2010

कौन सा विकल्प?


आज डर का

कुछ खास रंग

देख पा रही हूँ ,

जो कोहरे की तरह

सफेद है ...या

धुंए की तरह

एकदम काला

डर के ये दोनों रंग

या कहे दोनों पक्ष

चुनने का विकल्प

कौन सा होगा मेरा ?

एक रंग में सब कुछ

देखने की सुविधा है
तो दूसरे में

खुद को खोने की।
(चित्र : clarkvision.com)
Blogvani.com

रविवार, 3 जनवरी 2010

नव वर्ष आया



नव वर्ष आया


भानुकारों ने बिखेरा प्रकाश


प्रकाशमय हो गया कण-कण


रिक्त हुआ अँधेरा कण-कण से


भर दिया उल्लास, नई स्फूर्ति जन जन में


दूर हुई आलस्य की काली छाया


संचार हुई नव पवन संजीवनी


उठ खड़ा हुआ नव प्रभात

अंतर्मन में


सृजित हुआ नव जीवन


नव वर्ष आया, नव वर्ष आया।

( १९९७ में लिखी गई ये नव वर्ष से उल्लासित पक्तियां आज मुझे स्कूल टाइम की एक नोट बुक में मिल गई। जो मैंने अपने एक मित्र को ग्रीटिंग कार्ड में भेजने के लिए लिखा था। अब पता नहीं वह कहाँ है। पर आज उसकी याद आ ही गई)