गुरुवार, 11 जुलाई 2013

एकबारगी...

एक छोटे से पिजड़े में कैद
बेहद रंगीन बे-जुबान
दो चिडि़या
जो न तो चहकती है,
न हिलती, न डुलती है।
यहां तक कुछ खाने पीने को
भी नहीं मांगती।
कभी कभी डोलती हवा ही
चिडि़या समेत पिजड़े में
जान डालने में
सामर्थ होती है।
फिर  भी न जाने क्यों मेरा मन
उन्हें आजाद कर
'इंडिया गेट' पर असली को धोखा देती ..चहचहाती बे- जुबान चिड़िया 
आकाश में उड़ते देखने का होता है
एकबारगी।

3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

very nice expression .

प्रतिभा कुशवाहा ने कहा…

dhanywad ..Shalini ji

संजय भास्‍कर ने कहा…

सटीक ....प्रभावी, सच कहती रचना