शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

दुुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं!

उनकी  गजलें और हमारे जज्बात आपस में बातें करते हैं। इतनी नजदीकियां  शायद हम किसी से ख्वाबों में सोचा करते हैं। उनकी मखमली आवाज के दरमियां जब अल्फाज मौसिकी का दामन पकड़ती है, तब हम खुदाओं की जन्नतों से बड़ी जन्नत की सैर करते हैं। हम बात कर रहे है महरूम पर हमारे दिलों मे जिंदा मेहदी हसन साहब की।
फोटो गूगल के सहयोग से 
बुलबुल ने गुल से, गुल ने बहारों से कह दिया, एक चौदहवीं के चांद ने तारों से कह दिया, दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं, एक दिलरुबा है दिल में तो हूरों से कम नहीं।’ उनके गले से निकले यह शब्द हर प्यार करने वाले की आवाज बन जाते हैं। प्यार की दुनियां शायद यही हुआ करती है-रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का समां हो गये...। किसी से अपनी मन की बात कहनी हो तो बड़ी मुश्किल होती है... उफ! कैसे?...बात करनी मुझे, मुष्किल कभी ऐसे तो न थे-...। मिलना है तो बिछुड़ना भी कहीं न कही है- अब के हम बिछडे़, तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें। महबूब से इल्तजा करने मेँ भी उनका जवाब नही...एक बार चले आओ, फिर आकर चले जाना, सूरत तो दिखा जाओ, तुझे मेरे गीतों का संगीत बुलाता है...। उनके  गीत-संगीत की तासीर से कोई अंजान नहीं। प्रेमियों की तड़प् की बात करें तो ...रंजिश  ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ जा। या फिर... हमको गम नहीं था, गमे आशिकी से पहले...। प्यार की इंतहां भी देख सकते है... मैं रोज कहता हूं कि भूल जाऊ तुझे, रोज यह बात भूल जाता हूं...। फिर भी कहता हूं कि मुझे तुम नजर से गिरा तो रहे हो, मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे...।
'और भी गम है' की तर्ज पर कहे तो मेहदी साहब की गजलों में दुनियावी सच्चाई को उसी खूबी से कहते रहे और हम सुनते हैं-शिकवा न कर गिला न कर, ये दुनिया है प्यारे, यहां गम के मारे तड़पते रहे, यहां तेरे अशकों की कीमत नहीं है... रहम करना दुनिया की आदत नहीं है। किसी ने नहीं देखा, यहां खून के आंसू ढलकते रहे। यहां का दस्तूर  है खामोश रहना, जो गुजरी है वह किसी से न कहना...
शिकवा न कर गिला न कर...।
उनकी गजलों ने जैसे लोगों के अंदर का खालीपन पहचान कर बड़ी खूबी से उस खालीपन को भर दिया- न किसी की आंख का नूर हूं, न किसी के दिल का करार हूं। जो किसी की काम न आ सके, मैं वो एक मुस्ते-गुब्बार हूं...। कहते कहते एक बड़ी बात कह जाते हैं- तन्हा तन्हा मत सोचाकर, मर जावेगा...मर जावेगा मत सोचाकर...। चलो हम नहीं सोचते है हसन साहब! जीने के लिए आप को तो सुन सकते है न!!

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ग़ज़लों में जज़्बात ही बुने जाते हैं ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाकई।
प्यार की ही दुनिया है।