रविवार, 31 अगस्त 2014

सपनों की उड़ान


पिजड़े के अंदर 
कैद थी एक बुलबुल!

उसकी हर फड़फड़ाहट के साथ
उसकी हर बेचैनी के साथ
उसकी हर बेताबी के साथ
उसकी हर कोशिश के बाद
टूट कर रह जाते थे 
उसके मजबूत पर
पिजड़े के अंदर।

पिजड़े के अंदर 
कैद थी एक बुलबुल!

पर 
पिजड़े के अंदर! 
नहीं कैद थी बुलबुल की 
उड़ने की आकांक्षा,
उड़ने के सपने,
उड़ने की तत्परता
उड़ने की कोशिशें ।


टूटें हुए परो के रूप में 
पिजड़े के अंदर से 
उसके उड़ान के सपने
उड़ रहें थे हवा के साथ
दूर बहुत दूर तक।

कैद थी एक बुलबुल
पिजड़े के अंदर।
कबूतर पालने वाले कबूतर के पर क़तर देते है ताकि वे उड़ न सके। ऐसा ही एक कबूतर हमारी छत पर आया। 

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